January.2019
February.2019
March.2019
April.2019
May.2019
June.2019
July.2019
November.2019
December.2019
Baba's Murlis - November, 2019
Sun
Mon
Tue
Wed
Thu
Fri
Sat
27
28
29
30

26-11-2019 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - ड्रामा की श्रेष्ठ नॉलेज तुम बच्चों के पास ही है,

तुम जानते हो यह ड्रामा हूबहू रिपीट होता है''

प्रश्नः-

प्रवृत्ति वाले बाबा से कौन-सा प्रश्न पूछते हैं, बाबा उन्हें क्या राय देते हैं?

उत्तर:-

कई बच्चे पूछते हैं - बाबा हम धन्धा करें?

बाबा कहते - बच्चे, धन्धा भल करो लेकिन रॉयल धन्धा करो।

ब्राह्मण बच्चे छी-छी धन्धा शराब, सिगरेट, बीड़ी आदि का नहीं कर सकते क्योंकि इनसे और ही विकारों की खींच होती है।

ओम् शान्ति।

रूहानी बाप रूहानी बच्चों को समझा रहे हैं।

अब एक है रूहानी बाप की श्रीमत, दूसरी है रावण की आसुरी मत

आसुरी मत बाप की नहीं कहेंगे।

रावण को बाप तो नहीं कहेंगे ना।

वह है रावण की आसुरी मत।

अभी तुम बच्चों को मिल रही है ईश्वरीय मत।

कितना रात-दिन का फर्क है।

बुद्धि में आता है ईश्वरीय मत से दैवी गुण धारण करते आये हैं।

यह सिर्फ तुम बच्चे ही बाप द्वारा सुनते हो और कोई को मालूम नहीं पड़ता है।

बाप मिलते ही हैं सम्पत्ति के लिए।

रावण से तो और ही सम्पत्ति कम होती जाती है।

ईश्वरीय मत कहाँ ले जाती है और आसुरी मत कहाँ ले जाती है, यह तुम ही जानते हो।

आसुरी मत जबसे मिलती है, तुम नीचे गिरते ही आते हो।

नई दुनिया में थोड़ा-थोड़ा ही गिरते हो।

गिरना कैसे होता है, फिर चढ़ना कैसे होता है - यह भी तुम बच्चे समझ गये हो।

अभी श्रीमत तुम बच्चों को मिलती है फिर से श्रेष्ठ बनने के लिए।

तुम यहाँ आये ही हो श्रेष्ठ बनने के लिए।

तुम जानते हो - हम फिर श्रेष्ठ मत कैसे पायेंगे।

अनेक बार तुमने श्रेष्ठ मत से ऊंच पद पाया है फिर पुनर्जन्म लेते-लेते नीचे गिरते आये हो।

फिर एक ही बार चढ़ते हो।

नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तो होते ही हैं।

बाप समझाते हैं, टाइम लगता है।

पुरूषोत्तम संगमयुग का भी टाइम है ना, पूरा एक्यूरेट।

ड्रामा बड़ा एक्यूरेट चलता है और बहुत वन्डरफुल है।

बच्चों को समझ में बड़ा सहज आता है-बाप को याद करना है और वर्सा लेना है। बस।

परन्तु पुरूषार्थ करते हैं तो कइयों को डिफीकल्ट भी लगता है।

इतना ऊंच ते ऊंच पद पाना कोई सहज थोड़ेही हो सकता है।

बहुत सहज बाप की याद और सहज वर्सा बाप का है।

सेकण्ड की बात है।

फिर पुरूषार्थ करने लगते हैं तो माया के विघ्न भी पड़ते हैं।

रावण पर जीत पानी होती है।

सारी सृष्टि पर इस रावण का राज्य है।

अभी तुम समझते हो हम योगबल से रावण पर हर कल्प जीत पाते आये हैं।

अब भी पा रहे हैं।

सिखलाने वाला है बेहद का बाप।

भक्ति मार्ग में भी तुम बाबा-बाबा कहते आये हो।

परन्तु पहले बाप को नहीं जानते थे। आत्मा को जानते थे।

कहते थे चमकता है भ्रकुटी के बीच में अजब सितारा.......।

आत्मा को जानते हुए भी बाप को नहीं जानते थे।

कैसा विचित्र ड्रामा है।

कहते भी थे-हे परमपिता परमात्मा, याद करते थे, फिर भी जानते नहीं थे।

न आत्मा के आक्यूपेशन को, न परमात्मा के आक्यूपेशन को पूरा जानते थे।

बाप ही खुद आकर समझाते हैं।

बाप बिगर कब कोई रियलाइज़ करा न सके।

कोई का पार्ट ही नहीं।

गायन भी है ईश्वरीय सम्प्रदाय, आसुरी सम्प्रदाय और दैवी सम्प्रदाय।

है बहुत सहज।

परन्तु यह बातें याद रहें-इसमें ही माया विघ्न डालती है।

भुला देती है।

बाप कहते हैं नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार याद करते-करते जब ड्रामा का अन्त होगा अर्थात् पुरानी दुनिया का अन्त होगा तब नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार राजधानी स्थापन हो ही जायेगी।

शास्त्रों से यह बात कोई समझ न सके।

गीता आदि तो इसने भी बहुत पढ़ी है ना।

अब बाप कहते हैं इसकी कोई वैल्यू नहीं।

परन्तु भक्ति में कनरस बहुत मिलता है इसलिए छोड़ते नहीं।

तुम जानते हो सारा मदार पुरूषार्थ पर है।

धन्धा आदि भी कोई का रॉयल होता है, कोई का छी-छी धन्धा होता है।

शराब, बीड़ी, सिगरेट आदि बेचते हैं-यह धन्धा तो बहुत खराब है।

शराब सब विकारों को खींचती है।

किसको शराबी बनाना-यह धन्धा अच्छा नहीं।

बाप राय देंगे युक्ति से यह धन्धा चेन्ज कर लो।

नहीं तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।

बाप समझाते हैं इन सब धन्धों में है नुकसान, बिगर अविनाशी ज्ञान रत्नों के धन्धे के।

भल जवाहरात का धन्धा करते थे परन्तु फायदा तो नहीं हुआ ना।

करके लखापति बने। इस धन्धे से क्या बनते हैं?

बाबा पत्रों में भी हमेशा लिखते हैं पद्मापद्म भाग्यशाली।

सो भी 21 जन्मों के लिए बनते।

तुम भी समझते हो बाबा कहते बिल्कुल ठीक हैं।

हम सो यह देवी-देवता थे, फिर चक्र लगाते-लगाते नीचे आते हैं।

सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को भी जान गये हो।

नॉलेज तो बाप द्वारा मिली है परन्तु फिर दैवीगुण भी धारण करने हैं।

अपनी जांच करनी है-हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं हैं?

यह बाबा भी जानते हैं हमने अपना यह शरीर रूपी मकान किराये पर दिया है।

यह मकान है ना। इसमें आत्मा रहती है।

हमको बहुत फखुर रहता है-भगवान को हमने किराये पर मकान दिया है!

ड्रामा प्लेन अनुसार और कोई मकान उनको लेना ही नहीं है।

कल्प-कल्प यह मकान ही लेना पड़ता है।

इनको तो खुशी होती है ना।

परन्तु फिर हंगामा भी कितना मचा।

यह बाबा हंसी-कुड़ी में कब बाबा को कहते हैं-बाबा, आपका रथ बना तो हमको इतनी गाली खानी पड़ती है।

बाप कहते हैं सबसे जास्ती गाली मुझे मिली।

अब तुम्हारी बारी है।

ब्रह्मा को कब गाली मिली नहीं हैं।

अब बारी आयी है।

रथ दिया है यह तो समझते हैं ना तो जरूर बाप से मदद भी मिलेगी।

फिर भी बाबा कहते हैं बाप को निरन्तर याद करना, इसमें तुम बच्चे इनसे भी जास्ती तीखे जा सकते हो क्योंकि इनके ऊपर तो मामला बहुत हैं।

भल ड्रामा कहकर छोड़ देते हैं फिर भी कुछ लैस जरूर आती है।

यह बिचारे बहुत अच्छी सर्विस करते थे।

यह संगदोष में खराब हो गये।

कितनी डिससर्विस होती है।

ऐसा-ऐसा काम करते हैं, लैस आ जाती है।

उस समय यह नहीं समझते कि यह भी ड्रामा बना हुआ है।

यह फिर बाद में ख्याल आता है।

यह तो ड्रामा में नूँध है ना।

माया अवस्था को बिगाड़ देती है तो बहुत डिस सर्विस हो जाती है।

कितना अबलाओं आदि पर अत्याचार हो जाते हैं।

यहाँ तो खुद के बच्चे ही कितनी डिससर्विस करते हैं।

उल्टा सुल्टा बोलने लग पड़ते हैं।

अभी तुम बच्चे जानते हो बाप क्या सुनाते हैं?

कोई शास्त्र आदि नहीं सुनाते हैं।

अभी हम श्रीमत पर कितना श्रेष्ठ बनते हैं।

आसुरी मत से कितना भ्रष्ट बने हैं।

टाइम लगता है ना।

माया की युद्ध चलती रहेगी।

अभी तुम्हारी विजय तो जरूर होनी है।

यह तुम समझते हो शान्तिधाम सुखधाम पर हमारी विजय है ही।

कल्प-कल्प हम विजय पाते आये हैं।

इस पुरूषोत्तम संगमयुग पर ही स्थापना और विनाश होता है।

यह सारी डीटेल तुम बच्चों की बुद्धि में है।

बरोबर बाप हमारे द्वारा स्थापना करा रहे हैं।

फिर हम ही राज्य करेंगे।

बाबा को थैंक्स भी नहीं देंगे!

बाप कहते हैं यह भी ड्रामा में नूँध हैं।

मैं भी इस ड्रामा के अन्दर पार्टधारी हूँ।

ड्रामा में सबका पार्ट नूँधा हुआ है।

शिवबाबा का भी पार्ट है।

हमारा भी पार्ट है।

थैंक्स देने की बात नहीं।

शिवबाबा कहते हैं मैं तुमको श्रीमत दे रास्ता बताता हूँ और कोई बता न सके।

जो भी आये बोलो सतोप्रधान नई दुनिया स्वर्ग थी ना।

इस पुरानी दुनिया को तमोप्रधान कहा जाता है।

फिर सतोप्रधान बनने के लिए दैवीगुण धारण करने हैं।

बाप को याद करना है।

मंत्र ही यह है मनमनाभव, मध्याजी भव।

बस यह भी बताते हैं मैं सुप्रीम गुरू हूँ।

तुम बच्चे अभी याद की यात्रा से सारी सृष्टि को सद्गति में पहुँचाते हो।

जगतगुरू एक शिवबाबा है जो तुमको भी श्रीमत देते हैं।

तुम जानते हो हर 5 हजार वर्ष बाद हमको यह श्रीमत मिली है।

चक्र फिरता रहता है।

आज पुरानी दुनिया है, कल नई दुनिया होगी।

इस चक्र को समझना भी बहुत सहज है।

परन्तु यह भी याद रहे जो कोई को समझा सकें।

यह भी भूल जाते हैं।

कोई गिरते हैं तो फिर ज्ञान आदि सारा खत्म हो जाता है।

कला-काया माया ले लेती है।

सब कला निकाल कला रहित कर देती है।

विकार में ऐसे फँस जाते हैं, बात मत पूछो।

अभी तुमको सारा चक्र याद है।

तुम जन्म जन्मान्तर वेश्यालय में रहे हो, हजारों पाप करते आये हो।

सबके आगे कहते हो-जन्म-जन्म के हम पापी हैं।

हम ही पहले पुण्य आत्मा थे, फिर पाप आत्मा बने।

अब फिर पुण्य आत्मा बनते हैं।

यह तुम बच्चों को नॉलेज मिल रही है।

फिर तुम औरों को दे आप समान बनाते हो।

गृहस्थ व्यवहार में रहने से फ़र्क तो रहता है ना।

वह इतना नहीं समझा सकते हैं जितना तुम।

परन्तु सब तो नहीं छोड़ सकते हैं।

बाप खुद कहते हैं-गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है।

सब छोड़कर आवें तो इतने सब बैठेंगे कहाँ।

बाप नॉलेजफुल है।

वह कुछ भी शास्त्र आदि पढ़ते नहीं।

यह शास्त्र आदि पढ़ा था।

मेरे लिए तो कहते हैं गॉड फादर इज़ नॉलेजफुल।

मनुष्य यह भी जानते नहीं हैं कि बाप में क्या नॉलेज है।

अभी तुमको सारी सृष्टि के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज है।

तुम जानते हो यह भक्ति मार्ग के शास्त्र भी अनादि हैं।

भक्ति मार्ग में यह शास्त्र भी जरूर निकलते हैं।

कहते हैं पहाड़ टूट गया फिर बनेगा कैसे!

परन्तु यह तो ड्रामा है ना।

शास्त्र आदि यह सब खत्म हो जाते हैं, फिर अपने समय पर वही बनते हैं।

हम पहले-पहले शिव की पूजा करते हैं - यह भी शास्त्रों में होगा ना।

शिव की भक्ति कैसे की जाती है।

कितने श्लोक आदि गाते हैं।

तुम सिर्फ याद करते हो-शिवबाबा ज्ञान का सागर है।

वह अभी हमको ज्ञान दे रहे हैं।

बाप ने तुमको समझाया है-यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।

शास्त्रों में इतना लम्बा-चौड़ा गपोड़ा लगा दिया है, जो कब स्मृति में आ भी न सके।

तो बच्चों को अन्दर में कितनी खुशी होनी चाहिए-बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं!

गाया भी जाता है स्टूडेण्ट लाइफ इज़ दी बेस्ट।

भगवानुवाच-मैं तुमको यह राजाओं का राजा बनाता हूँ।

और कोई शास्त्रों में यह बातें हैं नहीं।

ऊंच ते ऊंच प्राप्ति है ही यह।

वास्तव में गुरू तो एक ही है जो सर्व की सद्गति करते हैं।

भल स्थापना करने वाले को भी गुरू कह सकते हैं, परन्तु गुरू वह जो सद्गति दे।

यह तो अपने पिछाड़ी सबको पार्ट में ले आते हैं।

वापिस ले जाने के लिए रास्ता तो बताते नहीं।

बरात तो शिव की ही गाई हुई है, और कोई गुरू की नहीं।

मनुष्यों ने फिर शिव और शंकर को मिला दिया है।

कहाँ वह सूक्ष्मवतन-वासी, कहाँ वह मूलवतनवासी।

दोनों एक हो कैसे सकते। यह भक्ति मार्ग में लिख दिया है।

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर तीन बच्चे ठहरे ना।

ब्रह्मा पर भी तुम समझा सकते हो।

इनको एडाप्ट किया है तो यह शिवबाबा का बच्चा ठहरा ना।

ऊंच ते ऊंच है बाप।

बाकी यह है उनकी रचना।

कितनी यह समझने की बातें हैं।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अविनाशी ज्ञान रत्नों का धन्धा कर 21 जन्मों के लिए पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है।

अपनी जांच करनी है-हमारे में कोई आसुरी गुण तो नहीं है?

हम ऐसा कोई धन्धा तो नहीं करते जिससे विकारों की उत्पत्ति हो?

2) याद की यात्रा में रह सारी सृष्टि को सद्गति में पहुँचाना है।

एक सतगुरू बाप की श्रीमत पर चल आप समान बनाने की सेवा करनी है।

ध्यान रहे-माया कभी कला रहित न बना दे।

वरदान:-

शुभ भावना, शुभ कामना के सहयोग से

आत्माओं को परिवर्तन करने वाले

सफलता सम्पन्न भव

जब किसी भी कार्य में सर्व ब्राह्मण बच्चे संगठित रूप में अपने मन की शुभ भावनाओं और शुभ कामनाओं का सहयोग देते हैं -

तो इस सहयोग से वायुमण्डल का किला बन जाता है जो आत्माओं को परिवर्तन कर लेता है।

जैसे पांच अंगुलियों के सहयोग से कितना भी बड़ा कार्य सहज हो जाता है,

ऐसे हर एक ब्राह्मण बच्चे का सहयोग सेवाओं में सफलता सम्पन्न बना देता है।

सहयोग की रिजल्ट सफलता है।

स्लोगन:-

कदम-कदम में पदमों की कमाई जमा करने वाला ही सबसे बड़ा धनवान है।